याद आए हैं उफ़ गुनह क्या क्या
हाथ उठाए हैं जब दुआ के लिए
Category: Gunaah Shayari
Gunaah Shayari – मैं रोज गुनाह करता हूँ
मैं रोज गुनाह करता हूँ वो रोज बख्श देता है,
मैं आदत से मजबूर हूँ वो रहमत से मशहूर है…
Gunaah Shayari – गुनाह गिन के मैं क्यूँ
गुनाह गिन के मैं क्यूँ अपने दिल को छोटा करूँ
सुना है तेरे करम का कोई हिसाब नहीं
Gunaah Shayari – मिरे गुनाह ज़ियादा हैं या
मिरे गुनाह ज़ियादा हैं या तिरी रहमत
करीम तू ही बता दे हिसाब कर के मुझे
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Gunaah Shayari – वो कौन हैं जिन्हें तौबा
वो कौन हैं जिन्हें तौबा की मिल गई फ़ुर्सत
हमें गुनाह भी करने को ज़िंदगी कम है
Gunaah Shayari – इक फ़ुर्सत-ए-गुनाह मिली वो भी
इक फ़ुर्सत-ए-गुनाह मिली वो भी चार दिन
देखे हैं हम ने हौसले पर्वरदिगार के