सर्द रातों की तन्हाई में..
दिल अपना कुछ यूँ बहलातें हैं,
कुछ उनका लिखा दोहरातें हैं,
कुछ अपना लिखा मिटाते हैं.
सर्द रातों की तन्हाई में..
दिल अपना कुछ यूँ बहलातें हैं,
कुछ उनका लिखा दोहरातें हैं,
कुछ अपना लिखा मिटाते हैं.
सामने उम्र पड़ी है शब-ए-तन्हाई की
वो मुझे छोड़ गया शाम से पहले पहले
रब किसी को किसी पर फ़िदा न करे,
करे तो क़यामत तक जुदा न करे,
ये माना की कोई मरता नहीं जुदाई में,
लेकिन जी भी तो नहीं पाता तन्हाई में..!!
चाँद निकले किसी जानिब तेरी ज़ेबाई का
रंग बदले किसी सूरत शब-ए-तन्हाई का
मुहब्बत में क्यों बेवफाई होती है,
सुना था प्यार में गहराई होती है,
टूट कर चाहने वाले के नसीब में,
क्यों सिर्फ फिर तन्हाई होती है.