अल्फ़ाज़ के कुछ तो कंकर फ़ेंको,
यहाँ झील सी गहरी ख़ामोशी है।
अल्फ़ाज़ के कुछ तो कंकर फ़ेंको,
यहाँ झील सी गहरी ख़ामोशी है।
ए खुदा अगर तेरे पेन की श्याही खत्म है तो मेरा लहू लेले,
यू कहानिया अधूरी न लिखा कर..
जाते वक्त उसने मुजसे अजीब सी बात कही
तुम जिंदगी हो मेरी, और मुझे मेरी जिंदगी से नफरत है…
जख्म है कि दिखते
…….. नही ,
मगर ये मत समझिए
कि दुखते नही…..!!
आज तक उस थकान से दुख रहा है बदन,
एक सफ़र किया था मैंने ख़्वाहिशों के साथ ।।
कहीं जरूरत से कम तो कहीं जरूरत से ज्यादा।
ए कुदरत तुझे हिसाब किताब करना नहीं आता।
आज लफ्जों को मैने शाम को पीने पे बुलाया है,
बन गयी बात तो ग़ज़ल भी हो सकती है…
तुम मेरी जिंदगी का वो एकलौता सच हो,
जिसके बारे में मैंने दुनिया के हर सख्श से झूठ कहा हैं..
तेरी महफ़िल…… और….. मेरी
आँखें…..
दोनों भरी-भरी हैं……!!
जिन्हें प्यार नहीं रुलाता उन्हें
प्यार की निशानियाँ रुला देती हैं.